गुलजार साहब की बेहतरीन शायरियां

गुलजार साहब की बेहतरीन शायरियां

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी 

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी 

अच्छी किताबें और अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते हैं, उन्हें पढना पड़ता हैं 

अच्छी किताबें और अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते हैं, उन्हें पढना पड़ता हैं 

इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां

इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां

हम समझदार भी इतने हैं के उनका झूठ पकड़ लेते हैं और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी यकीन कर लेते है

हम समझदार भी इतने हैं के उनका झूठ पकड़ लेते हैं और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी यकीन कर लेते है

टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ, में फिर से निखर जाना चाहता हूँ। मानता हूँ मुश्किल हैं, लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।

टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ, में फिर से निखर जाना चाहता हूँ। मानता हूँ मुश्किल हैं, लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।

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